विभिन्न राज्यों में श्रम कानूनों की समाप्ति

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Labour law in india
Labour

  मजदूर दिवस के बाद से भारत के राज्यों में होड़ लग गयी है श्रम कानूनों को समाप्त करने की। इसकी शुरुआत सर्वप्रथम 5 मई को मध्यप्रदेश से हुई, इसके बाद उत्तर प्रदेश, गुजरात,महाराष्ट्र,उडीसा और गोवा ने भी कुछ संसोधन करके श्रम कानूनों को लगभग समाप्त कर दिया है। बिहार व अन्य राज्य भी जल्द ही ऐसे ही परिवर्तन कर इनको समाप्त करने के संकेत दे रहे है। श्रम कानूनों को समाप्त करने के पीछे सरकार विदेशी कंपनियों को आकर्षित करने का हवाला दे रही है। चीन से कोरोना के कारण विस्थापित होने वाली कंपनियों को भारत की तरफ आकर्षित करने के लिए श्रम कानून समाप्त किये गए है और उन कम्पनियों को ओर भी रियायतें देने की बात कही गयी है।
ट्रेड यूनियन श्रम कानूनों की समाप्ति का विरोध कर रही है जबकि सरकार इस कदम को देशहित में बता रही है।सरकारों का कहना है कि इससे निवेश आएगा,नौकरी बढ़ेगी और अर्थव्यवस्था में रफ्तार आएगी वही ट्रेंड यूनियनों का कहना है कि इससे मजदूरों का शोषण होगा और उनकी आवाज को दबाया जाएगा।

उत्तर प्रदेश में श्रम कानूनों में हुए बदलाव

उत्तर प्रदेश सरकार ने 7 मई को श्रम कानूनों को समाप्त करने की घोषणा की । उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने 1000 दिनों के लिए श्रम कानूनों को समाप्त कर,उत्तर प्रदेश टेम्परेरी एग्जेम्प्शन फ्रॉम सर्टेन लेबर लॉज़ ऑर्डिनेंस 2020 बिल को लागू कर दिया है।

Labour Law in uttar pradesh
Labour Law

कौन से श्रम कानून समाप्त कर दिए गए है-

1.The Minimum Wages Act 1948
न्यूनतम मजदूरी अधिनियम-1948 भारत की संसद द्वारा पारित एक श्रम कानून है जो कुशल तथा अकुशल श्रमिकों को दी जाने वाली मजदूरी का निर्धारण करता है। यह अधिनियम सरकार को विनिर्दिष्ट रोजगारों में कार्य कर रहे कर्मचारियों के लिए न्यूनतम मजदूरी निर्धारित करने के लिए प्राधिकृत करता है।
2.The Maternity Benefit Act 1961
मातृत्व लाभ अधिनियम-1961, मातृत्व के समय महिला के रोजगार की रक्षा करता है और मातृत्व लाभ का हकदार बनाता है- अर्थात अपने बच्चे की देखभाल के लिए पूरे भुगतान के साथ उसे काम से अनुपस्थित रहने की सुविधा देता है। यह अधिनियम दस या उससे अधिक व्यक्तियों के रोजगार वाले सभी प्रतिष्ठानों पर लागू है।
3.The Equal Remuneration Act 1976
समान पारिश्रमिक अधिनियम-1976 में महिला व पुरूष को समान परिश्रमिक का प्रावधान है। इस अधिनियम के किसी प्रावधान के उलंघन के संबंध में शिकायतों तथा पुरुष और महिला कामगारों को समान दर पर मजदूरी का भुगतान नहीं करने से उत्‍पन्‍न दावों की सुनवाई तथा निवारण करने के उद्देश्‍य के लिए प्राधिकरणों के रूप में सहायक श्रम आयुक्‍तों की नियुक्ति की गई है।
4.The Trade Union Act 1926
ट्रेड यूनियन अधिनियम 1926 श्रमिकों को यूनियन बनाने का अधिकार देता है ताकि श्रमिक अपनी समस्याओं को सामूहिक रूप से उठा सके और शोषण के खिलाफ लड़ सके।
5.The Industrial Employment Act 1946
इस अधिनियम के तहत औद्योगिक प्रतिष्ठानों में नियोक्ताओं की आवश्यकता है, ताकि उनके तहत रोजगार की शर्तों को औपचारिक रूप से परिभाषित किया जा सके और इसके प्रमाणीकरण के लिए प्राधिकरण को प्रमाणित करने के लिए मसौदा स्थायी आदेश प्रस्तुत किए जा सकें।
6.The Industrial Disputes Act 1947
औद्योगिक विवाद वे विवाद हैं जो औद्योगिक संबंधों में कोई असहमति हो जाने के कारण उत्‍पन्‍न होते हैं। औद्योगिक संबंध शब्‍द से नियोजक और कर्मचारियों के बीच,कर्मचारियों के बीच तथा नियोजकों के बीच परस्‍पर संवादों के कई पहलू जुड़े हुए हैं।
7.The Factories Act 1948
कारखाना अधिनियम-1948 जो संशोधित करके कारखाना (संशोधित) अधिनियम 1987 हो गया है, भारत में कारखानों में व्यावसायिक सुरक्षा सम्बन्धी नीतियाँ बनाने में सहायक है। इसमें कार्यस्थल पर व्यक्ति की सुरक्षा, स्वास्थ्य, दक्षता आदि पर नीति निर्धारित करता है।

कौन से श्रम कानून समाप्त नही हुई है-

1.Bonded Labour System (Abolition) Act 1976
बंधुआ मजदूर प्रथा (समापन) अधिनियम-1976 बंधुआ मजदूरी को समाप्त करने के लिए लागू किया गया।
2.Employee’s Compensation Act 1923
कामगार क्षतिपूर्ति अधिनियम-1923 में कामगारों और उनके आश्रितों को रोज़गार के दौरान और उसी के कारण लगी चोट और दुर्घटना (कुछ व्‍यावसायिक बीमारियों सहित) तथा जिसकी परिणति विकलांगता या मृत्‍यु में हुई हो, में क्षतिपूर्ति की अदायगी का प्रावधान है।
3.Building And Other Construction Workers Act 1996
मिशन और उद्देश्य भवन एवं अन्य सन्निर्माण कर्मकार (नियोजन तथा सेवा शर्तों का विनियमन) अधिनियम-1996 जिसमें निर्माण श्रमिकों के पंजीकरण एवं कल्याणकारी योजनाओं का प्राविधान है, जिसके कार्यान्वयन हेतु राज्य सरकार द्वारा वर्ष, 2005 में राज्य नियमावली विनिर्मित की गई है।
4.Payment Of Wages Act 1936
मजदूरी भुगतान अधिनियम-1936 का सेक्शन 5 लागू रहेगा,जिसमे कहा गया है की जिनकी पेमेन्ट 15000 से कम है उसको कम नही किया जा सकता।


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