Vijay Singh Pathik , आज विजय सिंह पथिक की जयंती है। उनका जन्म 27 फरवरी 1884 को जिला बुलंदशहर के गांव अख्तियारपुर गुठावली में हुआ था।
Who Is Vijay Singh Pathik ? विजय सिंह पथिक कौन थे ?
इनके दादा इंदर सिंह राठी 18 57 की क्रांति के सिपाही रहे थे। पिता हमीर सिंह और माता कमल कुंवरी भी स्वतंत्रता आंदोलन की गतिविधियों में सम्मिलित रहे थे। विजय सिंह पथिक का व्यक्तित्व बहुआयामी एवं बहुप्रतिभाशाली था।
Indian Revolutionary Vijay Singh Pathik क्रांतिकारी विजय सिंह पथिक
देश की आजादी की लड़ाई में शामिल रहे लाखों करोड़ों लोगों में से कोई सशस्त्र क्रांति के द्वारा आजादी प्राप्त करना चाहता था, कोई गांधीवादी अहिंसक सत्याग्रह से। कोई पत्रकारिता के माध्यम से आजादी की अलख जगा रहा था, कोई कविता कहानियों के माध्यम से। कोई जन आंदोलन को इसका माध्यम बनाए हुए था, कोई राजनीतिक संगठन चलाकर अपने लक्ष्य की ओर बढ़ रहा था। किंतु विजय सिंह पथिक एक ऐसे अनोखे व्यक्ति हैं जो सशस्त्र क्रांति में भी शामिल रहे, गांधीवादी सत्याग्रह में भी। जिन्होंने छह-छह अखबारों का संपादन भी किया, कविताएं कहानियां भी लिखीं। जिन्होंने बड़े आंदोलन भी चलाए और जो कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष भी रहे। कुल मिलाकर यह कह सकते हैं कि पथिक जी का व्यक्तित्व एक बहुआयामी व्यक्तित्व था।
Vijay Singh Pathik’s Real Name पथिक का वास्तविक नाम
देश प्रेम और बलिदान की भावना पथिक जी को विरासत में मिली थी। बचपन से ही उनके अंदर देश को आजाद कराने का जज्बा था। अंग्रेजों के दमन और उत्पीड़न से बचने के लिए पथिक जी जिनका बचपन का नाम भूप सिंह राठी था 15-16 वर्ष की आयु में ही घर छोड़कर निकल गए थे। उनका पहला ठिकाना मध्यप्रदेश के इंदौर में बना। यहां वे मशहूर क्रांतिकारी शचिंद्र नाथ सान्याल के संपर्क में आए और उनके माध्यम से रासबिहारी बोस की सशस्त्र क्रांति योजना में सम्मिलित हो गए। 1908 में बंगाल के गवर्नर फ्रेजर की गाड़ी पर बम फेंकने और मुजफ्फरपुर के कलेक्टर पर जानलेवा हमला करने वाले क्रांतिकारियों में पथिक जी सम्मिलित थे। 1912 में दिल्ली में वायसराय के जुलूस पर बम द्वारा हमला करने में भी वे शामिल थे।
रासबिहारी बोस ने 1915 में पूरे देश में एक साथ हथियारों के बल पर सरकारी कार्यालयों पर कब्जा करके अंग्रेज सरकार को पलटने की योजना बनाई थी। राजस्थान में इस हमले का नेतृत्व विजय सिंह पथिक कर रहे थे। तय योजना के अनुसार उन्हें 21 फरवरी 1915 को अपने सशस्त्र साथियों के साथ सभी सरकारी कार्यालयों पर कब्जा कर लेना था। किंतु दो दिन पहले लाहौर में यह योजना लीक हो गई।उनके बहुत से प्रमुख सहयोगी पकड़े गए और सशस्त्र क्रांति कामयाब ना हो सकी। इस षड्यंत्र के केस में भूपसिंह राठी का नाम आने के बाद वे कई वर्षों के लिए भूमिगत हो गए और इसके बाद ‘विजय सिंह पथिक’ के रूप में प्रकट हुए। उन्होंने न केवल नाम और वेशभूषा बदल ली थी बल्कि वैचारिक परिवर्तन भी कर लिया था। अब उन्होंने गांधीजी के अहिंसा और सत्याग्रह के रास्ते को अपनाया। उन्हीं के नेतृत्व में बिजोलिया का प्रसिद्ध किसान आंदोलन हुआ जोकि अंग्रेज भारत का सबसे बड़ा और सफल आंदोलन माना जाता है। गांधी जी के निजी सचिव महादेव देसाई ने अपनी एक पुस्तक में लिखा है कि गांधीजी कहा करते थे कि सत्याग्रह की शिक्षा उन्होंने विजय सिंह पथिक से पाई है।
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Vijay Singh Pathik’s Books and Published Newspaper
विजय सिंह पथिक ने छह अखबारों का संपादन किया और हिंदी अंग्रेजी व राजस्थानी भाषा में 32 पुस्तकें लिखीं। अजय मेरु (उपन्यास),पथिक प्रमोद (कहानी संग्रह),पथिक जी के पत्र, पथिक जी की कविताएं आदि उनकी पुस्तकें है। उन्होंने नवीन राजस्थान के नाम से पत्र भी प्रकाशित किया था व गणेशशंकर विद्यार्थी द्वारा कानपुर से प्रकाशित प्रताप में भी लिखा था।
विजय सिंह पथिक की लिखी ये दो पंक्तियां किसी भी सामाजिक राजनीतिक कार्यकर्ता के जीवन का आदर्श हो सकती हैं:-
यश वैभव सुख की चाह नहीं,
परवाह नहीं जीवन न रहे।
यदि इच्छा है तो यह है जग में,
स्वेच्छाचार दमन न रहे।
VIJAY SINGH PATHIK LIVE LONG