यदि देखा जाए तो यह संख्या लाखों को पार कर जाती है। प्रदेश सरकार ने उद्योगों की दशा सुधारने के लिए भी समय-समय पर आदेश जारी किए हैं, लेकिन इनका विशेष असर दिखाई नहीं दे रहा है। सरकार ने श्रम कानूनों में आवश्यक संशोधन किए हैं, जिनको श्रमिक संगठन श्रमिक विरोधी बताकर पूरे साल इनका विरोध करते रहे। पूरे वर्ष श्रमिकों के सामूहिक मांग पत्र, वेतन समझौता, श्रमिकों के निलंबन व कंपनियों में तालाबंदी को लेकर यह साल सुर्खियों में रहा। आर्थिक मंदी के चलते छोटे-बड़े प्रतिष्ठानों में कार्यरत हजारों स्थायी-अस्थायी श्रमिकों को अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा। नपीनो ऑटो, हेमा इंजीनियरिंग, मुंजाल शोवा सहित कई प्रतिष्ठानों के श्रमिक मिनी सचिवालय पर धरना प्रदर्शन करते रहे। यहां तक कि उन्हें उप मुख्यमंत्री व प्रदेश श्रमायुक्त से गुहार लगाने के लिए चंडीगढ़ तक की भी दौड़ लगानी पड़ी।
Haryana Mazdoor Andolan : हरियाणा के औद्योगिक क्षेत्र में 2021 में पूरा साल मजदूर आंदोलन करते रहे, नही हुए समाधान
गुडग़ांव, वर्ष 2021 अलविदा होने जा रहा है और वर्ष 2022 के शुरू होने की प्रतिक्षा की जा रही है। औद्योगिक क्षेत्रों स्थित उद्योग देश में चल रही आर्थिक मंदी से प्रभावित हो रहे हैं, जिसके चलते हजारों श्रमिक अपनी नौकरी से हाथ भी धो चुके हैं। गुडग़ांव ओद्यौगिक दृष्टि से प्रदेश का ही नहीं, अपितु देश का सबसे बड़ा क्षेत्र माना जाता है। विश्व में भी गुडग़ांव का सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र में एक विशेष स्थान है। हजारों की संख्या में छोटे-बड़े उद्योग क्षेत्र के विभिन्न ओद्यौगिक क्षेत्रों उद्योग विहार, आईडीसी, आईएमटी मानेसर, बिनौला, खेडकीदौला, नाहरपुर रुपा आदि में स्थित हैं, जिनमें लाखों की संख्या में श्रमिक कार्यरत हैं। इन श्रमिकों में अप्रवासी श्रमिकों की संख्या भी कम नहीं है।
श्रम विभाग भी श्रमिकों की समस्याओं को सुलझाने में पूरी तरह से असफल रहा है, जिससे श्रमिकों में रोष व्याप्त होता जा रहा है। कोरोना महामारी का असर भी प्रतिष्ठानों पर पड़ा है। प्रतिष्ठानों की आर्थिक स्थिति भी डांवाडोल ही रही है। हालांकि अब स्थिति में सुधार अवश्य आया है। हालांकि प्रदेश सरकार ने श्रमिकों व असंगठित क्षेत्रों में कार्यरत श्रमिकों के कल्याणकारी योजनाओं की जानकारी भी शिविर लगाकर श्रमिकों को दी, लेकिन इन कल्याणकारी योजनाओं का लाभ उठाने के लिए श्रमिकों को कई औपचारिकताओं को पूरा करना होता है जो श्रमिक नहीं कर पाते। इन कल्याणकारी योजनाओं का लाभ श्रमिकों को बहुत कम मिल पा रहा है। हालांकि सरकार ने निजी संस्थानों में स्थानीय बेरोजगार युवाओं को रोजगार उपलब्ध कराने के लिए कानून भी बना दिया है लेकिन कानून लागू होने से पूर्व ही उद्यमियों ने न्यायालय का दरवाजा भी खटखटा दिया है और वे इस कानून को वापिस लेने या फिर इसमें संशोधन करने की मांग भी कर रहे हैं।
उधर श्रमिक संगठनों एटक के महासचिव कामरेड अनिल पंवार, मुरली कुमार सीटू के सतबीर सिंह, एसएल प्रजापति, भवन कामगार यूनियन, रेहड़ी पटरी यूनियन के पदाधिकारियों ने भी प्रदेश सरकार व जिला प्रशासन पर पूरे साल आरोप लगाते रहे कि श्रमिकों व छोटे दुकानदारों, मजदूरों का शोषण किसी न किसी रुप में किया जा रहा है। सरकार प्रबंधन पर नियंत्रण नहीं लगा पा रही है, जिससे औद्योगिक क्षेत्रों में श्रमिक अशांति फैलने का भय व्याप्त हो रहा है।