Rajesh Pilot , 10 फरवरी सन 1945 को उत्तर प्रदेश के जिला गौतम बुध नगर ( तब जिला गाजियाबाद ) के गाँव वेदपुरा में एक गुर्जर परिवार में जन्मे राजेश्वर प्रसाद (Rajesh Pilot) के पिता एक सैनिक थे । 10 वर्ष की उम्र के साधारण जीवन जीते राजेश्वर प्रसाद के परिवार पर संकट तब आया जब इनके पिता का आकस्मिक देहांत हो गया , उस वक्त इनकी उम्र 11 साल थी। परिवार में माता , विवाह योग्य दो बहनों और एक छोटे भाई का दायित्व इनके ऊपर आ गया, जिससे जिम्मेदारी की भावना बहुत कम उम्र में आ गयी । उस उम्र में पैदल कई किलोमीटर नंगे पैर चलते हुए भी शिक्षा पूरी करने की लगन और कुछ करने की चाहत लिए राजेश्वर प्रसाद को कुछ सालो के बाद गाँव छोड़कर दिल्ली आने का निर्णय लेना पड़ा , जहाँ उनके चचेरे भाई की दूध की डेरी थी ।
गर्मी हो या जाड़ा या बरसात, वो रोज़ सुबह चार बजे उठता, अपने चचेरे भाई नत्थी सिंह की डेरी के मवेशियों को चारा खिलाता, उनका गोबर साफ़ करता, दूध दुहता और फिर दिल्ली के वीआईपी इलाके की कोठियों में दूध पहुंचाता।
Rajesh Pilot कमज़ोर आर्थिक स्थिति
दूध बेचने के साथ साथ राजेश्वर प्रसाद (Rajesh Pilot) मंदिर मार्ग के म्यूनिसिपिल बोर्ड स्कूल में पढ़ाई भी कर रहे थे।
उस स्कूल में उन्हीं की कक्षा में पढ़ने वाले और ताउम्र उनके दोस्त रहे रमेश कौल बताते हैं, “आपको जान कर ताज्जुब होगा कि उस ज़माने में ये म्यूनिसिपिल स्कूल इंग्लिश मीडियम स्कूल हुआ करता था. हम लोग कक्षा 8 में एक ही सेक्शन में पढ़ते थे, इसलिए काफ़ी अच्छे दोस्त हो गए थे। वो एक सरकारी कोठी के पीछे के क्वार्टर में रहा करते थे, वो वहाँ से पैदल स्कूल आते थे।”
वो कहते हैं, “इनकी आर्थिक स्थिति काफ़ी कमज़ोर हुआ करती थी. इधर उधर से लोगों से कपड़े ले कर पहना करते थे. इसी दौरान वो एनसीसी में शामिल हो गए, क्योंकि वहाँ पहनने के लिए यूनिफ़ॉर्म मिलती थी. लेकिन स्कूल में जो भी गतिविधियाँ होती थीं, उनमें वो बढ़चढ़ कर भाग लिया करते थे।”
Rajesh Pilot युवावस्था में राजेश पायलट
युवावस्था राजेश्वर प्रसाद (Rajesh Pilot) के लिए कड़ी मेहनत का समय था । राजेश (Rajesh Pilot) सुबह जल्दी उठते , दूध निकालते और मंत्रियो की कोठी में दूध देने जाते फिर जल्दी आकर स्कूल भी जाते। इसी तरह शाम को भी दूध बाटकर फिर पढने के लिए समय निकालते। ये वो कठिन समय था जब राजेश्वर प्रसाद को संघर्ष में लैंप पोस्ट के नीचे भी पढ़ाई करनी पड़ी । लेकिन ये पीछे नहीं हटे और दोनों बहनों की शादी करने के अलावा छोटे भाई को भी शिक्षा दिलवाई लेकिन दुर्भाग्यवश छोटे भाई की आकस्मिक म्रत्यु ने इनको अंदर से तोड़ दिया ।
परिवार की जिम्मेदारी संभालते और दूध सप्लाई का काम करते करते ही इन्होने (Rajesh Pilot) अपनी ग्रेजुएशन पूरी की और सगे भाई से ज्यादा मानने वाले इनके चचेरे भाई नत्थी सिंह ने इनको पूरा सहयोग किया।
दिलचस्प बात ये है कि स्कूली पढ़ाई ख़त्म होने के बाद राजेश्वर प्रसाद और रमेश कौल के बीच संपर्क ख़त्म हो गया, सालों बाद उनकी मुलाकात तब हुई जब उन्होंने साथ साथ भारतीय वायुसेना के लिए क्वालिफ़ाई किया।
वहाँ भी अपने करियर की शुरुआत में वो (Rajesh Pilot) वायुसेनाध्यक्ष बनने के ख़्वाब देखा करते थे।
रमेश कौल बताते हैं, “हमें जहाँ ट्रेनिंग दी जा रही थी, वहाँ एक बार उस समय के वायुसेनाध्यक्ष एयर चीफ़ मार्शल अर्जन सिंह आए, वो हम लोगों के सीने और कंधों पर विंग्स और स्ट्राइप्स लगा रहे थे। राजेश नें कहा, देख लेना एक दिन मैं इस पद पर पहुंचूंगा और मैं भी इनकी तरह लोगों के विंग्स और स्ट्राइप्स लगाउंगा।”
कौल कहते हैं, “वहाँ पर कई वीआईपी अपने विमानों से आया करते थे और राजेश उन्हें देख कर कहा करते थे कि एक दिन तुम लोग भी मुझे इसी तरह रिसीव करोगे. हम लोग उनकी बात सुन कर हंसा करते थे और उसे गंभीरता से नहीं लेते थे।”
वायु सेना में प्रशिक्षण के बाद वे लड़ाकू विमान के पायलट बने और फिर पंद्रह वर्षो की अथक मेहनत के बाद प्रमोशन पाकर स्क्वार्डन लीडर बने ! उन्होंने 1971 के भारत पाक युद्ध में भी भाग लिया और बहादुरी के लिए पदक भी मिला।
Rajesh Pilot राजेश पायलट वायुसेना छोड़ राजनीति में आए
राजेश्वर प्रसाद (Rajesh Pilot) ने 1971 के भारत पाकिस्तान युद्ध में भाग लिया लेकिन कुछ सालों बाद उन्हें लगने लगा कि अगर उन्हें अपने समाज और परिवेश में बदलाव लाना है, तो उन्हें राजनीति में उतरना होगा. तभी 1980 के लोकसभा चुनाव आ गए और उन्होंने मन बनाया कि वो वायुसेना छोड़ कर लोकसभा का चुनाव लड़ें।
रमा पायलट याद करती हैं, “पहले तो वायु सेना राजेश का इस्तीफ़ा ही नहीं स्वीकार कर रही थी. फिर हम लोग बेगम आबिदा के पति फ़ख़रुद्दीन अली अहमद के पास गए जो उस समय भारत के राष्ट्रपति और सेना के सर्वोच्च सेनापति थे, उनके मन में पता नहीं क्या आया कि उन्होंने राजेश की अर्ज़ी पर लिख दिया कि उन्हें वायुसेना छोड़ने की इजाज़त दी जाए।”
लेकिन लुटियन जोंस के बंगलो में बचपन में दूध बेचने वाले राजेश पायलट की जिन्दगी उन्हें वायु सेना से फिर वापस उन्ही बंगलो तक ले जाना चाहती थी जहां उनका कष्ट भरा समय बीता था ,शायद उन्हें अपने कहे वो शब्द चरित्रार्थ करने थे जो राजेश पायलट की पहचान बन गये थे।
नैनीताल में हनीमून
1974 में उनकी रमा पायलट से शादी हुई. रमा बताती हैं, “हम लोग अपने हनीमून के लिए नैनीताल गए थे, उन्होंने मुझे बताया था कि उनके पास सिर्फ़ 5000 रुपये हैं, पहले दो दिन हम लोग एक पांच सितारा होटल में रुके। फिर अगले दो दिनों के लिए हम लोग एक तीन सितारा होटल में शिफ़्ट हो गए, हनीमून का अंत आते हम लोग 25 रुपये रात वाले कमरे में रह रहे थे।”
रमा कहती हैं, ” राजेश (Rajesh Pilot) इंदिरा गाँधी के पास जा कर बोले कि वो तत्कालीन प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के ख़िलाफ़ बागपत से चुनाव लड़ना चाहते हैं, वो उस समय 12, विलिंगटन क्रेसेंट में रहा करती थीं, इंदिरा गाँधी ने कहा कि मैं आपको सलाह नहीं दूंगी कि आप राजनीति में आए, आप वायुसेना से इस्तीफ़ा न दें, क्योंकि वहाँ आपका भविष्य उज्जवल है।”
उन्होंने बताया, “राजेश ने कहा कि मैं इस्तीफ़ा पहले ही दे चुका हूँ। मैं तो आपका आशीर्वाद लेने आया हूँ,फिर इंदिरा बोलीं कि बागपत एक मुश्किल क्षेत्र है, वहाँ चुनाव के दौरान बहुत हिंसा होती हैं, राजेश ने जवाब दिया, मैडम, मैंने हवाई जहाज़ से बम गिराए हैं, क्या मैं लाठियों का सामना नहीं कर सकता? इंदिरा गाँधी ने उस समय उनसे कोई वादा नही किया।
Rajesh Pilot भरतपुर से टिकट
रमा पायलट आगे बताती हैं- एक बार संजय ग़ांधी के ऑफिस से फ़ोन आया कि राजेश्वर (Rajesh Pilot) को संजय जी ने बुलाया है, “मेरा दिल तेज़ी से धड़कने लगा और मैं बहुत बेसब्री से राजेश का इंतज़ार करने लगी, मैं बार बार उन्हें देखने के लिए दरवाज़े तक जा रही थी, जैसे ही उनका स्कूटर रुका, मैंने जाकर कहा, स्कूटर ऑफ़ मत करो. सीधे चलो, संजय जी ने बुलाया है।”
रमा ने कहा, “जब हम कांग्रेस दफ़्तर पहुंचे तो संजय जी ने बताया कि आपके लिए इंदिरा जी का संदेश है कि आपको भरतपुर से चुनाव लड़ना है, हम लोगों ने तब तक भरतपुर का नाम तक नहीं सुना था. हमारी उनसे पूछने की हिम्मत भी नहीं पड़ी, ख़ैर पता चला कि भरतपुर राजस्थान में है, मैंने इनसे कहा कि अब यहाँ मत रुको. सीधे भरतपुर जाओ, क्योंकि टिकट तो पीसीसी ही देगी।”
उन्होंने (Rajesh Pilot) कहा, “उस समय जगन्नाथ पहाड़िया राजस्थान प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष थे, वो वहाँ से अपनी पत्नी को लड़ाना चाहते थे। भरतपुर में स्थानीय लोग चाह रहे थे कि चुनाव चिन्ह मिलने का समय निकल जाए, ताकि वो अपनी पसंद के उम्मीदवार को वहाँ से लड़वा सकें। लेकिन ये होशियार बंदे थे, इन्हें सारी बात समझ में आ गई.”
1979 में नौकरी से इस्तीफा देकर राजेश्वर प्रसाद जब भरतपुर में कोंग्रेस का पर्चा दाखिल कर रहे थे तो वहां के कार्यकर्ताओं ने उनसे निवेदन किया कि वे अपने नाम के साथ “पायलट ” लिखे । उन्होंने उनका आग्रह स्वीकार करके राजेश पायलट के नाम से परचा भरा और जब वो बाहर निकले तो “राजेश पायलट जिंदाबाद ” के नारे लग रहे थे ।उन्होंने भरतपुर की सीट से वहां के राजपरिवार की सदस्य महारानी को हराकर पहला चुनाव जीता और इसी के साथ राजनीति की दुनिया में उन्होंने कदम रखा ! इसके बाद उन्होंने (Rajesh Pilot) कई चुनाव जीते और 1991 से 1993 तक टेलिकॉम मिनिस्टर रहे और 1993 से 1995 तक आंतरिक सुरक्षा मंत्री रहे ।राजेश पायलट इसी दौरान आंतरिक सुरक्षा मंत्री रहते हुए पायलट जी (Rajesh Pilot) ने देखा कि एक विवादस्पद तांत्रिक चंद्रास्वामी जिसके सामने बड़े बड़े मंत्री और अधिकारीगण सर झुकाते थे और जिसे तत्कालीन प्रधानमन्त्री पी वी नरसिम्हा राव का करीबी भी माना जाता था उसके खिलाफ जांच बैठाने की किसी की हिम्मत नहीं होती थी ,उसके खिलाफ शिकायत आने के बाद भी कोई कार्यवाही नहीं हो रही थी , सत्ता में बेठे लोगो का भी मूक समर्थन उसे प्राप्त था , इसके अलावा सबूतों की कमी का हवाला देकर भी गिरफ्तारी न करने का दवाब भी था जिससे किसी मामले में पायलट के सामने भी संकट खड़ा हो सकता था .
पायलट (Rajesh Pilot) ने उस वक्त कहा था कि – “चाहे मुझे जेल जाना पड़े लेकिन ये खेल ख़त्म होगा “ पायलट ने उसके खिलाफ जांच बैठाई और उसे जेल भेज दिया। जिसका राजनितिक हलको में विरोध भी हुआ लेकिन राजेश पायलट की छवि और ज्यादा मजबूत और कद्दावर नेता की हो गयी जिसे उसके लक्ष्य से कोई नहीं भटका सकता । हालाँकि इसका खामियाजा राजेश पायलट को मंत्रालय में फेरबदल से चुकाना पड़ा लेकिन मजबूत इरादों वाले पायलट अडिग रहे ।इन्ही मजबूत इरादों की बदोलत राजेश पायलट ने सीताराम केसरी के सामने पार्टी अध्यक्ष का चुनाव भी लड़ा लेकिन सफल नहीं हुए ! लेकिन जैसा कि कहा जाता है उन्होंने अगला चुनाव सोनिया गांधी के सामने लड़ने की भी घोषणा कर दी थी । इसका उनके कई साथियो ने विरोध भी किया लेकिन वैचारिक तौर पर मजबूत और किसानो- मजदूरों द्वारा उन्हें अपना नेता माना जाता है ये विश्वास करते हुए उन्होंने पीछे हटने से मना कर दिया।
Rajesh Pilot डीटीसी की हड़ताल
सांसद बनने के बाद उन्होंने (Rajesh Pilot) तुरंत कांग्रेस नेतृत्व का ध्यान अपनी तरफ़ खींचा, जब 1984 में राजीव गाँधी प्रधानमंत्री बने, तो उन्होंने उन्हें भूतल राज्यमंत्री बनाया। उनके शुरू के ही तेवर से लग गया कि राजेश पायलट एक स्टीरियो टाइप राजनेता नहीं हैं।
उनके निजी सचिव रहे और बाद में इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक बने आरएस बुटोला बताते हैं, “जब पायलट साहब भूतल यातायात मंत्रालय में थे तो एक बार डीटीसी के कर्मचारियों ने चक्काजाम कर हड़ताल पर जाने की योजना बनाई, पायलट साहब ने इस हड़ताल से दिल्ली के लोगों को असुविधा से बचाने के लिए एक उच्चस्तरीय बैठक बुलाई, उन्होंने डीटीसी के चेयरमैन से पूछा कि इस हड़ताल से निपटने के लिए आपकी क्या योजनाएं हैं?”
बुटोला कहते हैं, “उन्होंने जवाब दिया कि हमने पिछली हड़तालों का अध्ययन किया है। हर बार इस तरह की हड़ताल में डीटीसी की संपत्ति का बहुत नुकसान किया जाता है,हमारी प्राथमिकता ये रहेगी कि इस बार हमारी संपत्ति का किसी तरह का कोई नुकसान न हो। उस समय राजेशजी ने एक बात कही जिसे मैं आज तक नहीं भूल पाया हूँ।”
उन्होंने कहा, “पायलट साहब ने उनका नाम ले कर कहा है कि आप को दिल्ली के लोगों को बस पर सफ़र कराने की ज़िम्मेदारी दी गई है, लेकिन आप तो एक सुरक्षा विशेषज्ञ की तरह बात कर रहे हैं, इस मुद्दे पर सलाह देने के लिए पुलिस आयुक्त यहाँ मौजूद हैं। आपका काम दिल्ली के लोगों को बसें उपलब्ध कराना है और आप संपत्ति को बचाने की बात कर रहे हैं, हमें ये बैठक रद्द कर देनी चाहिए, क्योंकि आप शायद इस बैठक के लिए पूरी तैयारी नहीं करके आए हैं, उन्होंने ये बैठक रद्द कर दी।”
Rajesh Pilot कश्मीर से प्यार
उत्तरपूर्व और कश्मीर दोनों राजेश पायलट के बहुत प्रिय विषय थे, कश्मीर में सामान्य स्थिति लाने के लिए उन्होंने अपनी तरफ़ से काफ़ी कोशिश की, हाँलाकि वहाँ उन पर कई हमले भी हुए।
उनके नज़दीकी दोस्त रहे रमेश कौल बताते हैं, “मेरे पास आ कर लोग बताते थे कि कश्मीर में अगर कोई सुनता है तो इनकी सुनता है, इंटेलिजेंस ब्यूरो से इनपुट मिलने के बाद नरसिम्हा राव ने उन्हें कश्मीर का इंचार्ज बनाया था, उस समय वो कूपवारा वगैरह में सभाएं किया करते थे, जब वहाँ कोई बाहर निकलने के बारे में सोच भी नहीं सकता था. तीन बार इनपर चरमपंथियों ने हमला किया, लेकिन मानना पड़ेगा कि उनके स्थानीय ड्राइवरों ने अपनी जान पर खेल कर उन्हें बचाया.”
कौल कहते हैं, “एक बार वो सोपोर गए,उस समय वहाँ मिलिटेंसी चरम पर थी, सोपोर के बाहर एक पुल होता है, वहाँ एक बार हमारी मोटरों का काफ़िला पहुंचा तो वो काफ़िला रोक कर लोगों से बाते करने लगे, डीजीपी ने मुझसे कहा कि किसी भी तरह उन्हें कार के अंदर करिए, क्योंकि कार बुलेटप्रूफ़ है,उस समय सोपोर का माहौल इतना ख़राब था कि वहाँ के स्थानीय लोगों ने उन्हें वार्न किया कि वो सोपोर का पुल पार न करें, वो अकेले राजनेता थे जो कश्मीर के चप्पे चप्पे पर गए।”
कौल ने कहा, “फ़ारूख़ साहब के कश्मीर छोड़ने के बाद वो अपने साथ उन्हें जहाज़ पर कश्मीर ले कर गए और उन्हें सलाह दी कि वो लोगों से मिले, एक बार मैसम बहुत ख़राब था। जहाज़ का कैप्टन मेरे पास आया कि क्या करें, पायलट साहब ने उन्हें सलाह दी कि ख़राब मौसम के ऊपर से जहाज़ को उड़ा कर ले जाएं,वो नहीं चाहते थे कि कश्मीर के लोगों को उनसे न मिल पाने से निराशा हो।”
राजेश पायलट जी पर एक बार जानलेवा हमला भी हुआ जिसे किसी उग्रवादी संघठन द्वारा किया बताया जाता है,अपनी स्पष्टवादिता और ना झुकने वाले व्यवहार के कारण ही ये कई उग्रवादी संगठनों के निशाने पर रहे लेकिन जनता का असीम प्यार और उनके लगाव से उनका बाल भी बांका नहीं हुआ।
“बेईमान लोग और बिचोलिये हट जाओ राजेश पायलट आ गया है “
राजेश पायलट (Rajesh Pilot) जी को ग्रामीण प्रष्ठभूमि से होने के कारण गाँवों और किसानो से लगाव था जिसका जिक्र वो अपने भाषणों में भी किया करते थे। चिरपरिचित राजस्थानी पगड़ी उनका पहनावा बन चुकी थी । एक बार किसी गाँव में जाने पर उन्होंने देखा कि कुछ छुटभैये नेता और अधिकारी उनके आगे पीछे लगे है और किसानो से सीधे बात नहीं करने दे रहे , तो उन्होंने सख्त लहजे में कहा कि –
बेईमान लोग और बिचोलिये हट जाओ , राजेश पायलट आ गया है। मुझे किसी बिचोलिये की जरुरत नहीं है !
ग्रामीण भारत से उनका (Rajesh Pilot) जुड़ाव इतना मजबूत था कि उनके दिल्ली स्थित सरकारी आवास पर कोई भी देशवासी उनसे मिल सकता था , सबकी शिकायते सुनना और बड़े आराम से सबको मनाना उनकी खासियत थी । कई बार ऐसा भी होता था कि उनसे (Rajesh Pilot) जुड़े उनके गाँव या आस पास के लोग या जानने वाले दिल्ली में किसी मरीज को लेकर अस्पताल आने वाले लोग भी उनके घर रुकने पहुँच जाते थे जिनका वहां रुकने का भी प्रबंध पायलट करते । उनके आवास पर ग्रामीण अंदाज में चारपाई और हुक्का उनके बुजुर्गो को अपनापन महसूस कराता जहाँ वो उनसे अपने मन की बात खुलकर कर लेते।
जय जवान जय किसान ट्रस्ट
उन्होंने (Rajesh Pilot) 1987 में जय जवान जय किसान ट्रस्ट बनाया जिसका उद्देश्य गरीब किसानो और पिछडो की मदद करना था , इस ट्रस्ट के द्वारा उन्होंने गरीब बच्चो की शिक्षा , सेनिको की विधवाओं , गरीब किसानो की मदद करने एवं अपहिजो की सहायता के लिए काफी कार्य किये जोकि अनवरत जारी है । इस ट्रस्ट की सहायता से कई हॉस्पिटल और स्कूलों को सहायता दी गयी । राजेश पायलट जी के परिवार में उनकी धर्मपत्नी श्रीमति रमा पायलट ,पुत्री सारिका , पुत्र सचिन पायलट (Sachin Pilot) जोकि उनकी राजनीतिक विरासत को संभाल रहे है और कोंग्रेस में प्रमुख युवा चेहरों में से एक है| फिलहाल सचिन पायलट (Sachin Pilot) राजस्थान के उप मुख्यमंत्री और राजस्थान कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष है।
वो दुखद दुर्घटना !
पायलट (Rajesh Pilot) जी को जीप चलाने का शौक था ,अपनी जीप वो अधिकतर खुद ही ड्राइव कर लेते थे। 11 जून 2000 को अपने चुनावी क्षेत्र दौसा से एक कार्यकर्त्ता सम्मलेन को संबोधित करके आते हुए जयपुर हाईवे पर उनकी जीप एक ट्रोले से टकरा गयी जिसमे वो गंभीर रूप से घायल हो गये और उसी दिन सवाई मानसिंह अस्पताल में शाम ७ बजे जमीन से जुडे नेता का दुखद निधन हो गया । देश की समस्याए , किसानो की समस्याए , और गरीबो की समस्याए सदन में मजबूत तरीके से उठाने वाली वो आवाज हमेशा के लिए शांत हो गई और पीछे छोड़ गयी एक चिरपरिचित मुस्कान और कभी न भूलने वाले वो शब्द जो हमेशा प्रेरणा देंगे हर किसान और मजदूर के बच्चो को –
“जब किसानो और मजदूरों के बच्चे पढ़ लिख कर उन कुर्सियों तक पहुचेंगे जहाँ से नीतियाँ बनती और क्रियान्वित होती है तब भारत का सही मायनों में विकास होगा “- राजेश पायलट Rajesh Pilot