Bhagat Singh जैसे ही भगत सिंह का नाम आता है, एक हाथ में बंदूक लिये हुए क्रांतिकारी की छवि हमारे सामने बन जाती है,
इससे आगे भगत सिंह को समझने की कोशिश ज्यादातर लोग नहीं करते; जबकि इससे कहीं अधिक महत्वपूर्ण है भगत सिंह के विचार जो क्रांतिकारी जीवन की उनकी सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि है। उनके वो विचार जो हर शोषणकारी सरकार, पूंजीवादी व दमकारी राष्ट्र के खिलाफ थे।
भगत सिंह (Bhagat Singh) को बंदूक तक सीमित करना, उनके बहुत बड़े विचारशील व्यक्तित्व को छोटा करना होगा। उनके विचार ही उन्हें अन्य क्रांतिकारियों से अलग करते है।
भगतसिंह के विचारों का प्रचार-प्रसार आज अधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि जहाँ आज देश में सम्प्रदायिकता का माहौल हैं वही किसान व मजदूर शोषण चरम पर है। असमानता का आलम यह है कि देश मे 85 करोड़ लोग मात्र 20 रुपये रोज पर जीने को मजबूर है और दूसरी तरफ भारत मे विश्व के सर्वाधिक करोड़पति है।
Bhagat Singh Rajguru Sukhdev |
भगत सिंह के विचार आज के दौर में इस लिए ओर अधिक महत्वपूर्ण हो जाते हैं कि भगत सिंह जितने उस दौर में अंग्रेजो से आजादी के लिए विचारशील थे, उतने ही आजाद भारत के लिए भी चिंतित थे।
भगत सिंह के विचारों को 1,2 पन्नों में लिख पाना संभव नहीं है फिर भी हमने उनके कुछ महत्वपूर्ण विचारों को संक्षेप में लिखने की कोशिश की है-
Bhagat Singh ने बताया इन्कलाब (क्राँति) क्या है
अदालती कार्यवाही के दौरान भगत सिंह (Bhagat Singh) ने इंकलाब के बारे में बताया कि -“इंकलाब (क्राँति) संसार का नियम है, यह मानवीय प्रगति का रहस्य है। क्राँति के लिए खूनी लडाइयाँ अनिवार्य नहीं है और न इसमें व्यक्तिगत प्रतिहिंसा के लिए कोई स्थान है। वह बम या पिस्तौल का सम्प्रदाय नहीं है। क्राँति से हमारा अभिप्राय है – अन्याय पर आधारित मौजूदा व्यवस्था मे आमूल परिवर्तन ।” अंग्रेजों को मारना भगत सिंह व उनके साथियों का मकसद नहीं था, वो चाहते थे शोषण की समाप्ती, इसीलिए असेम्बली में ऐसे बम फेके गये, जिनसे बस आवाज हो किसी को नुकसान नहीं ।
भगत सिंह ने कहाँ था, “क्राँति का यह अर्थ नहीं कि इसमें खून खराबा हो, यह बम और पिस्तौल का धर्म नहीं है। क्रांति का सही अर्थ यह है कि ऐसी सामाजिक व्यवस्था की स्थापना हो जिसमें किसी प्रकार का शोषण न हो, पूँजीवाद और साम्राज्यवाद नष्ट होकर जनता का राज्य स्थापित हो।”
धर्म पर भगतसिंह (Bhagat Singh) के विचार
भगतसिंह Bhagat Singh ने कहा है – मेरा विश्वास है जिन अर्थों में अभी तक धर्म शब्द इस्तेमाल होता आया है, उन अर्थों में अब इसकी बाजारी नहीं रही। अभी तक के प्रायः सभी धर्मों ने मनुष्यों को एक-दूसरे से अलग किया है, आपस मे लड़ाया है। दुनिया में अभी तक जितना रक्तपात धर्म के नाम पर धर्म के ठेकेदारों ने किया है उतना शायद ही किसी ने किया हो। सच बात तो यह है कि इस धरती का स्वर्ग धर्म की आड़ में उजाड़ा गया है। जो धर्म इन्सान को इन्सान से जुदा करें, प्यार की जगह उन्हें एक-दूसरे से घृणा करना सिखाएं, अन्ध-विश्वासों को प्रोत्साहन देकर लोगों के बौद्धिक विकास में बाधक हो, दिमागों को कुन्द करें, वह कभी मेरा धर्म नहीं बन सकता। मेरे आस-पास का हर वो कदम जो इन्सान को सुखी बना सके, समता, समृद्धि और भाईचारे के मार्ग पर उसे एक कदम आगे ले जा सके, वही धर्म है। दो शब्दों में कहें तो इस धरती और इस धरती पर भी भारत की यह पवित्र भूमि मेरा स्वर्ग है; उस पर विचरण करने वाला हर व्यक्ति मेरा देवता है, भगवान है। भगवान को भगवान से लडाकर मेरे स्वर्ग को नरक बनाने वाली शक्तियों को समाप्त कर इन्सान को वर्गहीन समाज की ओर आगे बढ़ाने वाला हर प्रयास, हर कदम मेरा धर्म है।
असेम्बली में बम फेंकने के लिये 8 अप्रैल 1929 के दिन का चुनाव
यह भी महत्वपूर्ण है Bhagat Singh भगतसिंह व उनके साथियों ने असेम्बली में बम फेंकने के लिए 8 अप्रैल 1929 का दिन ही क्यों चुना, क्योंकि उस दिन अंग्रेजों द्वारा 2 शोषणकारी बिल पास कराये जा रहे थे। जिसमे एक ‘ट्रेड डिस्प्यूट बिल’ था, जिसने मजदूरों के हड़ताल के अधिकार को समाप्त कर दिया था और दूसरा ‘पब्लिक सेफ्टी बिल’ था। आज इन दोनों बिलों को मोदी सरकार पास कर चुकी है। उस दिन 8 अप्रैल 1929 को इन दोनों बिलों, ट्रेड डिस्प्यूर बिल और पब्लिक सेफ्टी बिल पर जनमत होना था। भगत सिंह व बटुकेश्वर दत्त द्वारा धमाके के बाद फेके गये लाल पर्चों में लिखा हुआ था, “पब्लिक सेफ्टी बिल और ट्रेड डिस्प्यूर बिल व लाला लाजपतराय की हत्या के विरोध में बहरी सरकार के कानों तक अपनी आवाज पहुँचाने के लिए यह बम का धमाका किया गया है।
हिन्दुस्तान समाजवादी प्रजातंत्र संघ HSRA
काकोरी कांड की फाँसियों के बाद भगतसिंह, सुखदेव, शिव वर्मा, विजय के प्रयत्नों से उत्तर भारत के क्रांतिकारियों की एक मीटिंग 8 व 9 सितंबर 1928 को फिरोजशाह किले दिल्ली में हुई। जिसमे एक केंद्रीय कमेटी बनी, जिसने हिन्दुस्तान समाजवादी प्रजातंत्र संघ बनाया। समाजवादी शब्द जोड़ने का सुझाव (Bhagat Singh) भगतसिंह व सुखदेव ने दिया था।
भगतसिंह किस तरह की आज़ादी के लिए फाँसी पर चढ़े
भगतसिंह (Bhagat Singh) भारत मे मेहनतकश (मजदूर-किसान) की सत्ता स्थापित करना चाहते थे। विश्व से साम्राज्यवाद व शोषण को समाप्त कर, समानता स्थापित करने के पक्षधर थे।
असेम्बली में बम फेकने के बाद उन्होने 3 नारे लगाये –
“इन्कलाब जिन्दाबाद
साम्राज्यवाद का नाश हो
दुनिया के मजदूरो एक हो।”
इन नारों से साफ पता चलता है भगतसिंह विश्वभर के साम्राज्यवाद के खिलाफ थे और वह पूरे विश्व से साम्राज्यवाद को समाप्त करना चाहते थे और सम्पूर्ण विश्व में मेहनतकश वर्ग की सत्ता स्थापित करने के पक्षधर थे | अदालती कार्यवाही के दौरान उन्होंने कहा था – “वह ऐसे विश्व-संघ की स्थापना चाहते हैं जो पूँजीवाद के बन्धनों और साम्राज्यवादी युद्ध की तबाही से छुटकारा दिलाने में समर्थ हो सके।
भगत सिंह ने कहाँ था मेहनतकश वर्ग ही वास्तविक स्थिति का पोषक है, इसीलिए सत्ता मेहनतकश वर्ग के पास होनी चाहिए। भगतसिंह एक ऐसे विश्व का सपना देखते थे, जहाँ व्यक्ति द्वारा व्यक्ति का व राष्ट्र द्वारा राष्ट्र का शोषण संभव न हो, सत्ता मेहनतकश वर्ग के पास हो और मानवता लोगो का धर्म हो।