Father Sten Swamy , फादर स्टेन स्वामी का जन्म- 26 अप्रैल, 1937 को तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली के एक गांव में में हुआ था।
प्रारंभिक पढ़ाई सुप्रसिद्ध सेंट जोसेफ स्कूल में हुई। वहीं उनका सम्पर्क जेसुइट पादरियों से हुआ। जेसुइट सम्प्रदाय ईसा मसीह का सम्प्रदाय माना जाता है। इसकी स्थापना 1540 ईसवी में हुई थी। उन्होंने जेसुइट बनने का सोच लिया था। जिसका काम स्कूलों की स्थापना करना था। परंतु स्टेन स्वामी ने उस समय के बिहार में जो आज झारखण्ड है में जाने को सोच लिया था।
Father Sten Swamy : उन्होंने धार्मिक
उन्होंने (Father Sten Swamy) धार्मिक शिक्षा की शुरुआत 30 मई 1957 में कर दिया था। परंतु धार्मिक शिक्षा भी उन्होंने गरीबों के प्रति समर्पण की भावना से शुरू किया।
उनके (Father Sten Swamy) विचार को कार्यरूप देने की वास्तविक शुरुआत आया 1965 से, उन्होंने 2 सालों तक जेसुइट पादरी की ट्रेनिंग के दौरान अपने इस कार्य को शुरू किया था। उन्होंने सेंट जेवियर स्कूल , लुपुनगुटु चाइबासा, जिला पश्चिमी सिंहभूमि, अबके झारखण्ड में समय बिताया।
वे (Father Sten Swamy) शिक्षक के रूप में अपने शिष्यों के साथ साप्ताहिक बाजार जिसे मंगल हाट कहा जाता है में जाते। वहां उन्हें स्थानीय आदिवासियों को बाहर से आए सौदागरों द्वारा लूटते हुए देखना पड़ता। वे बताते हैं कि उस समय उनके लिए वे कुछ नहीं कर पाते थे।
छुट्टी के दिन वे बच्चों के साथ उनके गांव व घरों में जाते थे। वहां उन्हें आदिवासी लोगों के साथ जुड़ने, उनकी भाषा और संस्कृति समझने में मदद मिली थी। इन सबसे वे गहराई से प्रभावित हुए।
Father Sten Swamy : फिलीपींस में शिक्षा
स्टेन स्वामी 1967 में फिलीपींस की राजधानी मनिला में पढ़ने गए। वहां से उन्होंने समाजशास्त्र में एम ए की डिग्री लिया। वहां उन्होंने (Father Sten Swamy) स्थानीय लोगों का साम्राज्यवादी कम्पनियों द्वारा शोषण देखा। यह उनके लिए एक और निर्णायक मोड़ साबित हुआ। उन्हें आभास हुआ कि विश्वभर की आम मूलनिवासी आदिवासी जनता उत्पीड़ित है।
1971 में वे जमशेदपुर में जेसुइट पादरी के रूप में लौट आए। यहां स्टेन स्वामी को दो वर्षों तक कैथोलिक राहत चैरिटी सेवा का डायरेक्टर की जिम्मेदारी दी गयी। उन्होंने (Father Sten Swamy) राहत सामग्री के लिए गोदाम, आफिस बनाया और संचालन किया। परन्तु स्टेन स्वामी इतने से संतुष्ट नहीं थे। इस दौरान उन्होंने इंडियन सोशल इंस्टिट्यूट, बंगलौर में सामुदायिक विकास पर कोर्स किया और वहां के डायरेक्टर के सम्पर्क में रहे।
उनके (Father Sten Swamy) जीवन मे अगला महत्वपूर्ण मोड़ तब आया जब उन्होंने जेसुइट प्रोविंस जमशेदपुर के हेड बिल टॉम से दूरस्थ गांव हो में रहने की अनुमति मांगी। वे वहां उनके बीच रहकर उन लोगों की भाषा और उनकी स्थिति नजदीक से समझना चाहते थे। स्टेन स्वामी बिल टॉम की अनुमति से बड़ाइबिर गांव में एक परिवार के साथ रहे और उससे 15किलोमीटर चारों तरफ के क्षेत्र के नौजवानों से सम्पर्क करते हुए उन्हें जीवन की सभी स्थितियों को आलोचनात्मक तरीके से देखने-सोचने में मदद किया। इस प्रक्रिया में उनके पुराने विद्यार्थी और अखिल भारतीय कैथोलिक विश्वविद्यालय संघ के के कुछ स्वयंसेवक जुड़ गए।
गांव समुदाय ने उन्हें (Father Sten Swamy) एक छोटा प्लाट दिया। उसपर गांव की मदद से स्वामी ने एक छोटा घर बनाया जिसमें कमरे और किचन शामिल थे। बंगलोर सोशल इंस्टीट्यूट की दो नने भी आकर इस काम से जुड़ गईं। यह हर जरूरतमंद के लिए खुला रहता था।
1970 का दशक पूरे देश में असंतोष की लहर चल रही थी। जयप्रकाश नारायण के नागरिक अवज्ञा आंदोलन के तहत विद्यार्थियों का आंदोलन भी उभार पर था। बंगलोर सोशल इंस्टीट्यूट विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों का केंद्र बन गया था। उन्होंने (Father Sten Swamy) समाज को देखने का वैकल्पिक दृष्टिकोण खोजना शुरू कर दिया था। विद्यार्थियों ने समाज को देखने का मार्क्सवादी नजरिया पढ़ाने की मांग की।
बंगलोर सोशल इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर वोलकें ने इस नए चुनौती के लिए स्टेन स्वामी का नाम प्रस्तावित किया। परंतु स्वामी स्वयं और ज्यादा अध्ययन चाहते थे सामाजिक विश्लेषण के लिए। उन्होंने बेल्जियम में 1974 से जून 1975 तक के लिए कैथोलिक यूनिवर्सिटी ऑफ लाऊवें से स्कॉलरशिप प्राप्त किया। यद्यपि की स्वामी (Father Sten Swamy) ने डॉक्टरेट की डिग्री हेतु अध्ययन किया। परंतु वे वहां यही महसूस करते रहे कि वापस आकर शोषित-उत्पीड़ित समाज के युवाओं को गाइड करना है। ताकि वे समाज को समझ सकें, वैज्ञानिक तरीके से समाज विकास की गतिकी को समझते हुए समाजिक परिवर्तन के लिए प्रभावी रणनीति विकसित कर सकें। इस तरह की सोच सामान्यतौर पर धार्मिक मुल्ला-पंडित या पुजारी नहीं रखते हैं। बल्कि समाज को दबाने वालों के लिए ही समाज को सुलाने का काम करते हैं।
अतः स्टेन स्वामी ने 1975 से 1990 तक बंगलौर सोशल इंस्टिट्यूट में डॉ. दौरते बर्रेटो और कई समर्पित साथियों के साथ समाज के कई तबकों के सैकड़ों युवा-युवतियों से व्यवस्थित ट्रेनिंग सत्रों के माध्यम से सम्पर्क साधा। उसके (Father Sten Swamy) बाद वे इसे व्यवहारिक रूप देने के लिए क्षेत्र में उतरे।
जल्द ही देश के विविध क्षेत्रों और बांग्लादेश, नेपाल, श्रीलंका इत्यदि देशों से सहभागियों ने 3 महीने की समाज विश्लेषण और सामुदायिक संगठनों पर सघन कोर्स में भागीदारी किया।
यह स्वाभाविक था कि कैथोलिक संस्था के कई लोग इंस्टिट्यूट के ‘मार्क्सवाद के प्रति झुकाव’ से अपसेट थे। टीम सीनियर जेसुइट से सहमत थे। स्टेन स्वामी के समाज के वैज्ञानिक विश्लेषण और शोषित-उत्पीड़ित समाज के प्रति पक्षधरता के प्रशिक्षण से देश और दक्षिणी एशिया से बहुत लोग प्रभावित हुए थे।
आदिवासी हितों के प्रति अपने पहले प्यार की तरफ वापसी- 1991 में स्टेन स्वामी ने फील किया कि उन्होंने (Father Sten Swamy) बंगलोर सोशल इंस्टिट्यूट में काफी लंबा समय बिता लिया है। अब उन्होंने अपने “प्रथम प्रेम- झारखंड के आदिवासियों का हित” की तरफ लौटना तय किया।
यहां आकर वे (Father Sten Swamy) पश्चिमी सिंहभूमि के चाइबासा में स्थित सेंट जेवियर स्कूल के जेसुइट समाज के साथ रुके और झारखंड मानव अधिकार संगठन-जोहार को पुनः खड़ा करने में लग गए।
बहुत जल्द ही स्वामी जोहार ऑफिस में रहने आ गए और वो आदिवासी समाज के परम्परागत स्वशासन:- मुंडा-मानकी व्यवस्था की पुनर्बहाली में लग गए। इसी के साथ वे उस क्षेत्र के सामाजिक एक्टिविष्टो और समाज के प्रति समर्पित लोगों से सम्पर्क बनाने में लग गए।
विस्थापन विरोधी सक्रियता
1990 की दशक के अंत आते-आते इस क्षेत्र में पूंजी-मुनाफाकेन्द्रित-विशालकाय कंपनियों की लूट के लिए आदिवासियों और मूलवासियों को विस्थापित करने की समस्या व्यापक होने लगी।
नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज प्रोजेक्ट-पलामू और गुमला जिले में एवम कोयल-कारो डैम- रांची और पश्चिमी सिंहभूमि जिले में व्यापके पैमाने पर आबादी को उजड़ने का खतरा पैदा कर दिया था। इसके विरुद्ध आंदोलन में जेसुइट समाज भी शामिल हुआ। जनता की इस बदहाली के खिलाफ व्यापक आंदोलन उठ खड़ा हुआ। स्टेन स्वामी इस आंदोलन के केंद्र बने।
स्टेन स्वामी (Father Sten Swamy) जून 2001 में चाइबासा से रांची आकर पुरुलिया रोड पर घराना अपार्टमेंट में रहने लगे और जनता की बेदखली के खिलाफ संगठनों और आंदोलनों को कोआर्डिनेट करने लिए सम्पर्क करने लगे।
बगइचा:- स्टेन स्वामी ने बगइचा नाम से सामाजिक कार्यवाही केंद्र के लिए जमीन तलाशते रहे। रांची जेसुइट प्रोविंस इस उद्देश्य के लिए नामकुम के कृषि प्रशिक्षण केंद्र परिसर में एक एकड़ जमीन स्टेन स्वामी को दे दिया। स्वामी (Father Sten Swamy) ने बगइचा के निर्माण के लिए एक आदिवासी आर्किटेक्ट को तलाश किया और जेसुइटो के सेंट्रल ज़ोन ने निर्माण कार्य को फाइनेंस किया। बगइचा का निर्माण 2004 में शुरू होकर 2006 में पूरा हुआ। तबसे स्टेन स्वामी बगइचा में ही रहकर आदिवासी जनता की विविध समस्याओं को उठाते रहे हैं।
पथल गड़ी आंदोलन
2010 के मध्य से झारखंड के खूंटी जिले के मुंडा आदिवासियों ने भारत के संविधान के 5वीं अनुसूची को लागू करने की मांग करते हुए जमीन के सीमांकन की परंपरागत तरीके को अपनाते हुए पत्थलगाड़ना शुरू किया। इसे पथलगड़ी आंदोलन कहा जाता है। संविधान की 5वीं अनुसूची आदिवासी जनता को विशेष अधिकार देता है कि उनकी सहमति के बगैर उनकी जमीन पर कोई प्रोजेक्ट नहीं लगाया जा सकता।
जनता द्वारा संविधान को लागू करने की मांग को वहां की तत्कालीन भाजपा सरकार ने “विकास विरोधी और राष्ट्र विरोधी” कहना शुरू किया और इस आंदोलन को कुचलने के लिए बड़े पैमाने पर राज्य और केंद्रीय सुरक्षा बलों को झारखंड में उतारा गया। याद रहे उस समय केंद्रीय सुरक्षा बलों को भेजने वाली केंद्र में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की मनमोहन सिंह की सरकार थी और आज प्रगतिशील लेख लिखने वाला पी चिदंबरम गृहमंत्री था। इस दमन के बढ़ने के साथ बहुत से जनपक्षधर एक्टिविष्टो और बुद्धिजीवियों ने सरकार से पथलगड़ी आंदोलन के दमन की जगह आदिवासी लोगों से बातचीत करने की मांग करते हुए लिखना और फेसबुक पर पोस्ट करना शुरू किया। सरकार ने फेसबुक पोस्ट को आधार बनाकर स्टेन स्वामी सहित 20 लोगों के खिलाफ देशद्रोह का मुकदमा दर्ज किया।
बड़े पूंजीपतियों-कॉरपोरेट घरानों के मुनाफाखोरी का विरोध:- स्टेन स्वामी (Father Sten Swamy) को देशी-विदेशी दैत्याकार कम्पनियों के मुनाफे की हवस का विरोध करने की कीमत चुकानी पड़ी है। स्टेन स्वामी के काम ने बहुत से जमीनी एक्टिविष्टो, संगठनों और आंदोलनों को सामाजिक परिवर्तन की सही दिशा दिया और उनका मार्गदर्शन किया। उन्होंने आदिवासी हितों से सम्बंधित, आदिवासी जनता की दुर्दशा और शोषण उत्पीड़न पर सहित कई मुद्दों पर ढेरों किताबें लिखा है। इनमें आदिवासियों के अधिकारों और सरकारों द्वारा उनके उल्लंघनों का व्यौरा है।
स्टेन स्वामी (Father Sten Swamy) ने आतंकी और देशद्रोह के फर्जी मुकदमों में 12साल के बच्चों से लेकर 80 साल से ऊपर के आदिवासी महिला पुरुषों को जेल में डालने के खिलाफ ‘परस्क्यूटेड प्रिजनर्स सोलिडेरिटी कमिटी’ बनाया। इसके माध्यम से उन्होंने जेलों में वर्षों से बन्द आदिवासी दलितों की जमानत, त्वरित ट्रायल और रिहाई की मांग किया और ऐसे बंदियों पर शोध करके सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका भी दायर करवाया है।
स्टेन स्वामी ने समाज के विश्लेषण, उसके बुनावट, शोषित-श्रमिक वर्ग में विभाजन के संदर्भ में मार्क्सवादी दृष्टिकोण को अपनाया था। उन्होंने आदिवासी जनता की जमीन जल जंगल और खनिज सम्पदाओं के मालिकाने के संदर्भ में संवैधानिक अधिकारों और उसके छिनने के प्रति सरकारों को आगाह करते हुए लेख लिखा और काम किया था। इसीकारण वे कॉरपोरेट लुटेरों के आंख की किरकिरी बने थे।
स्टेन स्वामी का आदिवासी हितों के प्रति अनथक संघर्ष ने ऐसी स्थिति बना दी कि कॉरपोरेट मुनाफे की पर्यावरण विरोधी, जनविकास विरोधी मुनाफाकेन्द्रित परियोजनाओं को झारखंड में लगाना मुश्किल हो गया। स्टेन स्वामी जल, जंगल, जमीन और खनिज संपदा को जनता की सामूहिक संपत्ति मानते थे और उक्त मानना था कि सिर्फ मुनाफा को बढ़ाने वाली और जनता को बेदखल और बदहाल करने वाली विकास योजनाएं नहीं चल सकतीं। दलितों, आदिवासियों, और श्रमिकों के हित वाली विकास मॉडल के लिए संघर्ष करना ही स्टेन स्वामी का सपना था।
उनका जनता के प्रति प्रेम ने इस कागजी शेर जैसी कॉरपोरेट-मित्र मोदी सरकार को उनका दुश्मन बना दिया। और पूरी सत्ता ने मिलकर स्टेन स्वामी की हत्या कर दिया। स्टेन स्वामी ने शादी नहीं किया था और उनका कोई निजी परिवार नहीं था। झारखंड की आदिवासी जनता ही उनका परिवार थी। उन्होंने कोर्ट से अपील किया था कि उन्हें अंतिम समय मे रांची के बगइचा में उनके लोगों के साथ रहने दिया जाय। वे जेल द्वारा इलाज के पक्ष में कत्तई नहीं थे। पार्किंसन सहित कई बीमारियों के बावजूद वे चलते-फिरते जेल में गए थे। परन्तु वहां जाते ही बीमार और अशक्त होते गए पर कोर्ट भी एनआईए और कॉरपोरेट के साथ शामिल होकर उनकी हत्या में हिस्सेदारी की।
—–कृपा शंकर