Karl Marx |
Karl Marx, कार्ल मार्क्स जर्मन दार्शनिक, अर्थशास्त्री, इतिहासकार, राजनीतिक सिद्धांतकार, समाजशास्त्री, पत्रकार और वैज्ञानिक समाजवाद के प्रणेता थे। उनका पूरा नाम कार्ल हेनरिख मार्क्स, इनका जन्म 5 मई 1818 को त्रेवेस के एक यहूदी परिवार में हुआ,जो बाद में ईसाई परिवार हो गया था।
Karl Marx शिक्षा
17 वर्ष की अवस्था में मार्क्स (Karl Marx) ने कानून का अध्ययन करने के लिए बॉन विश्वविद्यालय जर्मनी में प्रवेश लिया। तत्पश्चात् उन्होंने बर्लिन और जेना विश्वविद्यालयों में साहित्य, इतिहास और दर्शन का अध्ययन किया। इसी काल में वह हीगेल के दर्शन से बहुत प्रभावित हुए। 1839-41 में उन्होंने दिमॉक्रितस और एपीक्यूरस के प्राकृतिक दर्शन पर शोध-प्रबंध लिखकर डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की।
Karl Marx कार्य-क्षेत्र
1842 में मार्क्स (Karl Marx) ने कोलोन से प्रकाशित ‘राइनिशे जीतुंग’ पत्र में पहले लेखक और तत्पश्चात् संपादक के रूप में काम किया किंतु सर्वहारा क्रांति के विचारों के प्रतिपादन और प्रसार करने के कारण 15 महीने बाद ही 1843 में उस पत्र का प्रकाशन बंद करवा दिया गया। मार्क्स पेरिस चले गये, वहाँ उन्होंने ‘द्यूस फ्रांजोसिश’ जारबूशर पत्र में हीगेल के नैतिक दर्शन पर अनेक लेख लिखे। 1845 में वह फ्रांस से निष्कासित होकर ब्रूसेल्स चले गये और वहीं उन्होंने जर्मनी के मजदूर सगंठन और ‘कम्युनिस्ट लीग’ के निर्माण में सक्रिय योग दिया। 1847 में एजेंल्स के साथ ‘अंतराष्ट्रीय समाजवाद’ का प्रथम घोषणापत्र (कम्युनिस्ट मॉनिफेस्टो) प्रकाशित किया
1848 में मार्क्स (Karl Marx) ने पुन: कोलोन में ‘नेवे राइनिशे जीतुंग’ का संपादन प्रारंभ किया और उसके माध्यम से जर्मनी को समाजवादी क्रांति का संदेश देना आरंभ किया। 1849 में इसी अपराध में वह प्रशा से निष्कासित हुआ। वह पेरिस होते हुए लंदन चले गए जीवन पर्यंत वहीं रहे। लंदन में सबसे पहले उसने ‘कम्युनिस्ट लीग’ की स्थापना का प्रयास किया, किंतु उसमें फूट पड़ गई। अंत में मार्क्स को उसे भंग करना पड़ा। उनका ‘नेवे राइनिश जीतुंग’ भी केवल छह अंको में निकल कर बंद हो गया।
1859 में मार्क्स (Karl Marx) ने अपने अर्थशास्त्रीय अध्ययन के निष्कर्ष ‘जुर क्रिटिक दर पोलिटिशेन एकानामी’ नामक पुस्तक में प्रकाशित किये। यह पुस्तक मार्क्स की उस बृहत्तर योजना का एक भाग थी, जो उन्होंने संपुर्ण राजनीतिक अर्थशास्त्र पर लिखने के लिए बनाई थी। किंतु कुछ ही दिनो में उन्हें लगा कि उपलब्ध साम्रगी उनकी योजना में पूर्ण रूपेण सहायक नहीं हो सकती। अत: उन्होंने अपनी योजना में परिवर्तन करके नए सिरे से लिखना आंरभ किया और उसका प्रथम भाग 1867 में दास कैपिटल (हिंदी में पूंजी शीर्षक से प्रकाशन) के नाम से प्रकाशित किया। ‘द कैपिटल’ के शेष भाग मार्क्स की मृत्यु के बाद एंजेल्स ने संपादित करके प्रकाशित किए। ‘वर्गसंघर्ष’ का सिद्धांत मार्क्स के ‘वैज्ञानिक समाजवाद’ का मेरूदंड है। इसका विस्तार करते हुए उन्होंने इतिहास की भौतिकवादी व्याख्या और बेसिक मूल्य के सिद्धांत की स्थापनाएँ कीं। मार्क्स के सारे आर्थिक और राजनीतिक निष्कर्ष इन्हीं स्थापनाओं पर आधारित हैं।
1864 में लंदन में ‘अंतरराष्ट्रीय मजदूर संघ’ की स्थापना में मार्क्स (Karl Marx) ने बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। संघ की सभी घोषणाएँ, नीति और कार्यक्रम मार्क्स द्वारा ही तैयार किये जाते थे। कोई एक वर्ष तक संघ का कार्य सुचारू रूप से चलता रहा, किंतु बाकुनिन के अराजकतावादी आंदोलन, फ्रांसीसी जर्मन युद्ध और पेरिस कम्यूनों के चलते ‘अंतरराष्ट्रीय मजदूर संघ’ भंग हो गया। किंतु उसकी प्रवृति और चेतना अनेक देशों में समाजवादी और श्रमिक पार्टियों के अस्तित्व के कारण कायम रही।
‘अंतरराष्ट्रीय मजदूर संघ’ भंग हो जाने पर मार्क्स (Karl Marx) ने पुन: लेखनी उठाई। किंतु निरंतर अस्वस्थता के कारण उसके शोधकार्य में अनेक बाधाएँ आईं। मार्च 14, 1883 को मार्क्स के तूफानी जीवन की कहानी समाप्त हो गई। मार्क्स का प्राय: सारा जीवन भयानक आर्थिक संकटों के बीच व्यतीत हुआ। उसकी छह संतानो में तीन कन्याएँ ही जीवित रहीं।
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Karl Marx कार्ल मार्क्स के विचार
1.कार्ल मार्क्स (Karl Marx) ने कहा था कि इतिहास खुद को दोहराता है, पहली बार एक त्रासदी की तरह और दूसरी बार एक मजाक की तरह। महिलाओं को लेकर उन्होंने कहा था कि महान सामाजिक बदलाव बिना महिलाओं के उत्थान के असंभव हैं। सामाजिक प्रगति का आकलन महिलाओं की सामाजिक स्थिति देखकर किया जा सकता है।
2. वो बच्चों को स्कूल भेजना चाहते थे, न कि काम पर
कई लोगों इस वाक्य को एक बयान के तौर पर ले सकते हैं पर साल 1848 में, जब कार्ल मार्क्स कम्युनिस्ट घोषणापत्र लिख रहे थे, तब उन्होंने बाल श्रम का जिक्र किया था।
द ग्रेट इकोनॉमिस्ट की लेखिक लिंडा यूह कहती हैं, “मार्क्स के साल 1848 में जारी घोषणापत्र में बच्चों को निजी स्कूलों में मुफ़्त शिक्षा देना उनके दस बिंदुओं में से एक था. कारखानों में बाल श्रम पर रोक का भी जिक्र उनके घोषणा पत्र मे किया गया था।”
3.मार्क्स का कहना था कि खेत, मशीनें, कारखानें आदि उत्पादन के साधन हैं, इन पर जिनका मालिकाना हक होता है वे मालिक और यहां काम करने वाले लोग मजदूर होते हैं। जबकि जो भी उत्पादन होता है, उसपर मजदूर का कोई हक नहीं होता। मजदूर बेहतर काम की दशा और वेतन की इच्छा रखता है, जबकि मालिक हमेशा अधिक से अधिक लाभ कमाना चाहता है। वर्ग संघर्ष का यह बड़ा कारण है।
4.कार्ल मार्क्स ने लिखा था कि कैसे एक पूंजीवादी समाज में लोगों को जीने के लिए श्रम बेचना उसकी मजबूरी बना दिया जाएगा,मार्क्स के अनुसार अधिकांश समय आपको आपकी मेहनत के हिसाब से पैसे नहीं दिए जाते थे और आपका शोषण किया जाता था।
मार्क्स चाहते थे कि हमारी ज़िंदगी पर हमारा खुद का अधिकार हो, हमारा जीना सबसे ऊपर हो. वो चाहते थे कि हम आज़ाद हो और हमारे अंदर सृजनात्मक क्षमता का विकास हो।
5.दुनिया के मजदूरों एक हो का नारा देने वाले कार्ल मार्क्स ने सर्वहारा को एक क्रांतिकारी ताकत बताया था। उनका मानना था कि सर्वहारा वर्ग मानव विकास के क्रम में पूंजीवाद को साम्यवाद तक लेकर जाएगा और मानव को गुलामी से मुक्ति देगा,उन्होंने इतिहास की व्याख्या करते हुए बताया कि दुनिया का इतिहास वर्ग संघर्ष का इतिहास है।
6. वो चाहते थे कि हम अपने पसंद का काम करें
आपका काम आपको खुशी देता है जब आपको अपने मन का काम करने को मिलता है। साल 1844 में लिखी उनकी किताब में उन्होंने काम की संतुष्टि को इंसान की बेहतरी से जोड़कर देखा था, वो पहले शख़्स थे जिन्होंने इस तरह की बात पहली बार की थी।
7.उन्होंने प्रश्न किया कि तमाम दर्शन ये सोचने में लगे थे कि संसार का निर्माण कैसे हुआ, किसी ने भी इस संसार को बदलने की बात नहीं की। कार्ल मार्क्स ने ही सबसे पहले दर्शन को आदर्शवाद के चंगुल से मुक्त कर भौतिकवाद के धरातल पर ला खड़ा किया, उन्होंने महान दार्शनिक हीगेल के द्वंद्व के सिद्धांत की वैज्ञानिक आलोचना कर द्वंद्वात्मक भौतिकवाद का सिद्धांत दिया, इतिहास को वैज्ञानिक ढंग से समझने का नजरिया भी उनके ऐतिहासिक भौतिकवाद की देन है।
8. वो चाहते थे कि हम भेदभाव का विरोध करें
अगर समाज में कोई व्यक्ति ग़लत है, अगर आप महसूस कर रहे हैं कि किसी के साथ अन्याय, भेदभाव या ग़लत हो रहा है, आप उसके ख़िलाफ़ विरोध करें। आप संगठित हों, आप प्रदर्शन करें और उस परिवर्तन को रोकने के लिए संघर्ष करें।
संगठित विरोध के कारण कई देशों की सामाजिक दशा बदली, रंग भेदभाव, समलैंगिकता और जाति आधारित भेदभाव के ख़िलाफ़ क़ानून बने।
9.कार्ल मार्क्स अपने विचारों की वजह से कई सरकारों की आंख की किरकिरी थे, उन्हें कई देशों से निकाल दिया गया। फ्रांस में हीगेल के विचारों पर लिखने की वजह से देश निकाला दे दिया गया, इसके बाद वो ब्रसेल्स चले गए जहां उन्होंने कम्युनिस्ट लीग की स्थापना की। 1848 में एंगेल्स के साथ मिलकर अंतर्राष्ट्रीय समाजवाद का कम्युनिस्ट घोषणापत्र तैयार किया।
10.उन्होंने सरकारों, बिजनेस घरानों और मीडिया के गठजोड़ पर नजर रखने को कहा,कार्ल मार्क्स ने ऐसा महसूस किया था 19वीं शताब्दी में, हालांकि उस समय सोशल मीडिया नहीं था फिर भी वो पहले शख़्स थे जिन्होंने इस तरह के सांठगांठ की व्याख्या की थी।
“कार्ल मार्क्स (Karl Marx) ने मीडिया की ताक़त महसूस की थी. लोगों की सोच प्रभावित करने के लिए यह एक बेहतर माध्यम था,इन दिनों हम फेक़ न्यूज़ की बात करते हैं, लेकिन कार्ल मार्क्स ने इन सब के बारे में पहले ही बता दिया था।”
“मार्क्स (Karl Marx) उस समय प्रकाशित लेखों का अध्ययन करते थे, वो इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि गरीब लोगों के द्वारा किए गए अपराधों को ज्यादा जगह दी जाती थी। वहीं, राजनेताओं के अपराधों की ख़बर दबा दी जाती थी।”
कार्ल मार्क्स (Karl Marx) की व्याख्या एक दार्शनिक के रूप में की जाती है, पर निलसन इससे असहमत दिखते हैं. वो कहते हैं, “जो कुछ भी उन्होंने लिखा और किया, वो एक दर्शन की तरह लगते हैं पर जब आप उनके जीवन और कामों को गौर से देखेंगे तो आप पाएंगे कि वो एक एक्टिविस्ट थे, उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय कामगार संघ की स्थापना की. वो गरीब लोगों के साथ हड़ताल में शामिल हुए।’